0 Bookmarks 81 Reads0 Likes
हम मौत भी आए तो मसरूर नहीं होते
मजबूर-ए-ग़म इतने भी मजबूर नहीं होते
दिल ही में नहीं रहते आँखों में भी रहते हो
तुम दूर भी रहते हो तो दूर नहीं होते
पड़ती हैं अभी दिल पर शरमाई हुई नज़रें
जो वार वो करते हैं भरपूर नहीं होते
उम्मीद के वादों से जी कुछ तो बहलता था
अब ये भी तिरे ग़म को मंज़ूर नहीं होते
अरबाब-ए-मोहब्बत पर तुम ज़ुल्म के बानी हो
ये वर्ना मोहब्बत के दस्तूर नहीं होते
कौनैन पे भारी है अल्लाह रे ग़ुरूर उन का
इतने भी अदा वाले मग़रूर नहीं होते
है इश्क़ तिरा 'फ़ानी' तश्हीर भी शोहरत भी
रुस्वा-ए-मोहब्बत यूँ मशहूर नहीं होते
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments