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अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला
मैंने भी सुना है अब जाएगा तेरा डोला
इन राहों के पत्थर भी मानूस थे पाँवों से
पर मैंने पुकारा तो कोई भी नहीं बोला
लगता है ख़ुदाई में कुछ तेरा दख़ल भी है
इस बार फ़िज़ाओं ने वो रंग नहीं घोला
आख़िर तो अँधेरे की जागीर नहीं हूँ मैं
इस राख में पिन्हा है अब भी वही शोला
सोचा कि तू सोचेगी, तूने किसी शायर की
दस्तक तो सुनी थी पर दरवाज़ा नहीं खोला
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