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सूतल मैं रहलौं सखियाँ विष कर आगर हो
सतगुरु दिहलै जगाई पाचौं सुख सागर हौ।। 1।।
जब रहली जननी के ओदर, परन सम्हारल हो
जब लौ तन में प्रान, न तोहि बिसराइब हो ।। 2।।
एक बुन्द से साहेब मन्दिल, बनावल हो
बिना नेंव के मन्दिल, बहु कल लागल हो ।। 3।।
इहवाँ गाँव न ठाँव नहीं पुर पाटन हो
नाहिन बाट बटोही नहीं हित आपन हो ।। 4।।
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