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इत है नीर नहावन जोग॥
अनतहि भरम भूला रे लोग॥टेक॥
तिहि तटि न्हाये निर्मल होइ॥
बस्तु अगोचर लखै रे सोइ॥१॥
सुघट घाट अरु तिरिबौ तीर॥
बैठे तहाँ जगत-गुर पीर॥२॥
दादू न जाणै तिनका भेव॥
आप लखावै अंतर देव॥३॥
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