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अजहूँ न निकसे प्रान कठोर .
दरसन बिना बहुत दिन बीते सुंदर प्रीतम मोर.
चारि पहर चारों जुग बीते रैनि गंवाई भोर .
अवधि गई अजहूँ नहिं आए कतहुँ रहे चितचोर.
कबहूँ नैन निरखि नहिं देखे मारग चितवत तोर.
दादू ऐसे आतुर बिरहिनि जैसे चन्द चकोर.
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