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गाहि सरोवर सौरभ लै, ततकाल खिले जलजातन मैं कै।
नीठि चलै जल वास अचै, लपटाइ लता तरु मारग मैं कै।
पोंछत सीतन तैं श्रम स्वेदंन, खेद हटैं सब राति रमै कै।
आवत जाति झरोखनि कैं मग, सीतल बात प्रभात समै कै।।

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