0 Bookmarks 86 Reads0 Likes
ख़याले नावके मिजगाँ में बस हम सर पटकते हैं ।
हमारे दिल में मुद्दत से ये ख़ारे ग़म खटकते हैं ।
रुख़े रौशन पै उसके गेसुए शबगूँ लटकते हैं ।
कयामत है मुसाफ़िर रास्तः दिन को भटकते हैं ।
फ़ुगाँ करती है बुलबुल याद में गर गुल के ऐ गुलची ।
सदा इक आह की आती है जब गुंचे चटकते हैं ।
रिहा करता नहीं सैयाद हम को मौसिमे गुल में ।
कफ़स में दम जो घबराता है सर दे दे पटकते हैं ।
उड़ा दूँगा 'रसा' मैं धज्जियाँ दामाने सहरा की ।
अबस खारे बियाबाँ मेरे दामन से अटकते हैं ।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments