चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग's image
2 min read

चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

Bharat Bhushan PantBharat Bhushan Pant
0 Bookmarks 2671 Reads0 Likes

चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

और जीना पड़ रही है ज़िंदगी बिल्कुल अलग

वो अलग एहसास था जब कश्तियाँ मौजों में थीं

लग रही है अब किनारे से नदी बिल्कुल अलग

और कुछ महरूमियाँ भी ज़िंदगी के साथ हैं

हर कमी से है मगर तेरी कमी बिल्कुल अलग

एक अन-जानी सदा ने क्या पता क्या कह दिया

रूठ कर बैठी है सब से ख़ामुशी बिल्कुल अलग

लफ़्ज़ की दुनिया अलग शहर-ए-मआनी और है

मैं अलग हूँ मुझ से मेरी शाएरी बिल्कुल अलग

आइने में मुस्कुराता मेरा ही चेहरा मगर

आईने से झाँकती बे-चेहरगी बिल्कुल अलग

सोचता हूँ रंग कितने हैं मिरे किरदार में

मैं कभी अपनी तरह हूँ और कभी बिल्कुल अलग

सब अँधेरों से जुदा दिल का अँधेरा जिस तरह

हर उजाले से है घर की रौशनी बिल्कुल अलग

ज़िंदगी की लय बिखरने का सबब शायद यही

साज़ की धुन से है मेरी नग़्मगी बिल्कुल अलग

मुझ को इन सैराबियों ने एक सहरा कर दिया

आज भी लेकिन है मेरी तिश्नगी बिल्कुल अलग

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts