व्यौहार राजेन्द्र सिंह (14 सितम्बर 1900 - 02 मार्च 1988 जबलपुर) हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार थे जिन्होने हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने की दिशा में अतिमहत्वपूर्ण योगदान दिया। फलस्वरूप उनके ५०वें जन्मदिन के दिन ही, अर्थात 14 सितम्बर 1949 को, हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने हिंदी के लगभग 100 से अधिक बौद्धिक ग्रंथों की रचना की, जो सम्मानित-पुरस्कृत भी हुईं और कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से संस्तुत-समाविष्ट भी की गईं।
गोस्वामी तुलसीदास की समन्वय साधना (1928),
महात्मा जी का महाव्रत (1935),
त्रिपुरी का इतिहास (1939),
हिंदी गीता (1942),
आलोचना के सिद्धांत (1956),
हिंदी रामायण (1965),
सावित्री (1972)
गोस्वामी तुलसीदास की समन्वय साधना (1928),
महात्मा जी का महाव्रत (1935),
त्रिपुरी का इतिहास (1939),
हिंदी गीता (1942),
आलोचना के सिद्धांत (1956),
हिंदी रामायण (1965),
सावित्री (1972)
हिंदी दिवस का इतिहास और पृष्ठभूमि
हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। इस निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने और हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए 1953 से भारत में 14 सितंबर को हर वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी को यह दर्जा इतना आसानी से नहीं मिल गया। इसके लिए लंबी लड़ाई चली थी, जिसमें व्यौहार राजेंद्र सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी। अंतत: व्यौहार राजेंद्र सिंह के 50वें जन्मदिवस अर्थात 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा मिला।