0 Bookmarks 67 Reads0 Likes
हर एक बात तिरी बे-सबात कितनी है
पलटना बात को दम भर में बात कितनी है
अभी तो शाम हुई है अभी तो आए हो
अभी से पूछ रहे हो कि रात कितनी है
वो सुनते सुनते जो घबराए हाल-ए-दिल बोले
बयान कितनी हुई वारदात कितनी है
तिरे शहीद को दूल्हा बना हुआ देखा
रवाँ जनाज़े के पीछे बरात कितनी है
किसी तरह नहीं कटती नहीं गुज़र चुकती
इलाही सख़्त ये क़ैद-ए-हयात कितनी है
हमारी जान है क़ीमत तो दिल है बैआना
गिराँ-बहा लब-ए-नाज़ुक की बात कितनी है
जो शब को खिलते हैं ग़ुंचे वो दिन को झड़ते हैं
बहार-ए-बाग़-ए-जहाँ बे-सबात कितनी है
महीनों हो गए देखी नहीं है सुब्ह-ए-उम्मीद
किसे ख़बर ये मुसीबत की रात कितनी है
उदू के सामने ये देखना है हम को भी
किधर को है निगह-ए-इल्तिफ़ात कितनी है
ग़ज़ल लिखें भी तो क्या ख़ाक हम लिखें 'बेख़ुद'
ज़मीन देखिए ये वाहियात कितनी है
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments