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मेरी नज़र में
अधूरे खुदा का नाम इंसान है --
और पूरे इंसान का नाम खुदा है...
जो कुछ भी ग़लत है,वह इसीलिए है
कि उसके लिए बहुत जगह है--अधूरेपन में.
पूरे में उसके लिए जगह नहीं है...
इसलिए इंसान खुदा से दुआ माँगता है...
एक अधूरापन पूरा होने दुआ माँगता है...
और यही रिश्ता है--इंसान और खुदा के बीच
एक दुआ का रिश्ता...
सारा ने अपने कई खतों में लिखा--
"मैं हाथों से गिरी हुई दुआ हूँ."
मैं कहना चाहती हूँ--
सारा हाथों से गिरी हुई दुआ जरूर थी
पर अपने हाथो से गिरी हुई नहीं
वह इंसान के हाथों से गिरी हुई दुआ थी...
वह इंसान चाहे उसके शौहर थे
या उसकी नज्मों के नक्क़ाद
वह उनकी हाथों से गिरी हुई दुआ थी...
इससे अगर कोई रिश्ता टूटा
इंसान और खुदा का रिश्ता टूटा
सारा तो दुआ थी
और दुआ हमेशा सलामत रहती है.
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