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अब वो अगला सा इल्तिफ़ात नहीं

Altaf Hussain HaliAltaf Hussain Hali
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अब वो अगला सा इल्तिफ़ात नहीं

जिस पे भूले थे हम वो बात नहीं

मुझ को तुम से ए'तिमाद-ए-वफ़ा

तुम को मुझ से पर इल्तिफ़ात नहीं

रंज क्या क्या हैं एक जान के साथ

ज़िंदगी मौत है हयात नहीं

यूँही गुज़रे तो सहल है लेकिन

फ़ुर्सत-ए-ग़म को भी सबात नहीं

कोई दिल-सोज़ हो तो कीजे बयाँ

सरसरी दिल की वारदात नहीं

ज़र्रा ज़र्रा है मज़हर-ए-ख़ुर्शीद

जाग ऐ आँख दिन है रात नहीं

क़ैस हो कोहकन हो या 'हाली'

आशिक़ी कुछ किसी की ज़ात नहीं

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