गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ's image
1 min read

गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ

Ada JafriAda Jafri
0 Bookmarks 116 Reads0 Likes

गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ
हम ऐसे लोग अब मिलें हिकायतों के दरमियाँ

लहू-लुहान उँगलियाँ हैं और चुप खड़ी हूँ मैं
गुल ओ समन की बे-पनाह चाहतों के दरमियाँ

हथेलियों की ओट ही चराग़ ले चलूँ अभी
अभी सहर का ज़िक्र है रिवायतों के दरमियाँ

जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी
वो दास्ताँ उलझ गई वज़ाहतों के दरमियाँ

सहिफ़ा-ए-हयात में जहाँ जहाँ लिखी गई
लिखी गई हदीस-ए-जाँ जराहतों के दरमियाँ

कोई नगर कोई गली शजर की छाँव ही सही
ये ज़िंदगी न कट सके मुसाफ़तों के दरमियाँ

अब उस के ख़ाल-ओ-ख़द का रंग मुझ से पूछना अबस
निगाह झपक झपक गई इरादतों के दरमियाँ

सबा का हाथ थाम कर 'अदा' न चल सकोगी तुम
तमाम उम्र ख़्वाब ख़्वाब साअतों के दरमियाँ

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts