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वहाँ पहुँचा दिया है इश्क़ ने अब मरहला दिल का

Abr Ahsani GunnauriAbr Ahsani Gunnauri
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वहाँ पहुँचा दिया है इश्क़ ने अब मरहला दिल का

जहाँ सब फ़र्क़ मिट जाता है बिस्मिल और क़ातिल का

जुदाई का वफ़ा का जौर का उल्फ़त की मुश्किल का

रहा है सामना हर संग से आईना-ए-दिल का

चलो अच्छा हुआ तुम आ गए दम तोड़ता था मैं

यही दुश्वार थी साअ'त यही था वक़्त मुश्किल का

पलट आता हूँ मैं मायूस हो कर उन मक़ामों से

जहाँ से सिलसिला नज़दीक-तर होता है मंज़िल का

कमाल-ए-शौक़ में मजनूँ अना लैला का क़ाएल है

अगर ऐसे में पर्दा ख़ुद-बख़ुद उठ जाए महमिल का

अरक़ से तर जबीं ख़ंजर में लग़्ज़िश रुख़ पे घबराहट

अदब ऐ सख़्त-जाँ पर्दा खुला जाता है क़ातिल का

खड़ा है 'अब्र' दर पर कुछ नहीं देते न दो लेकिन

नहीं दिल तोड़ते अरबाब-ए-हिम्मत अपने साइल का

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