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क़ैदियों में न करे ज़िक्र-ए-गुलिस्ताँ कोई
ले के उड़ जाए न गुलज़ार में ज़िंदाँ कोई
दाग़-हा-ए-दिल-ए-वीराँ पे तअज्जुब न करो
बस भी जाता है किसी वक़्त बयाबाँ कोई
शायद इस बात पे लब मेरे सिए जाते हैं
आह के साथ निकल जाए न अरमाँ कोई
शिद्दत-ए-दर्द ने फ़ितरत ही बदल दी दिल की
नाला हो जाता है बनता है जो अरमाँ कोई
सख़्ती-ए-राह-ए-तलब देख के जी छूट गया
'अब्र' वो छोड़ चला जादा-ए-इरफ़ाँ कोई
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