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लन-तरानी का बताने के लिए राज़ मुझे
कौन देता है सर-ए-तूर ये आवाज़ मुझे
इश्क़ में और भी दीवाना बना देती है
मेरी आवाज़ में मिल कर तिरी आवाज़ मुझे
रूह आज़ाद थी पाबंद-ए-क़फ़स रह न सकी
उड़ गया ले के मिरा जज़्बा-ए-परवाज़ मुझे
मैं तो जाता ही था तंग आ के अदम की जानिब
तुम ने क्यों रोक लिया दे कर इक आवाज़ मुझे
ता'ने सब देते हैं मुझ को मिरी मज़लूमी की
किस क़दर रहम-ओ-करम पर था तिरे नाज़ मुझे
कौन अब कश्मकश-ए-ज़ीस्त से दे मुझ को नजात
कर चुका है मिरा क़ातिल नज़र-अंदाज़ मुझे
देखते ही उन्हें आहें भी हैं फ़रियादें भी
'अब्र' सब आ ही गए इश्क़ के अंदाज़ मुझे
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