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आ रही है ये तूर से आवाज़

Abr Ahsani GunnauriAbr Ahsani Gunnauri
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आ रही है ये तूर से आवाज़

आए वो जिस को ताब-ए-दीद पे नाज़

ये तड़प और ये आह रूह-ए-गुदाज़

हाए हैं अपना ख़ुद नहीं हमराज़

है वहीं इब्तिदा-ए-सरहद-ए-नाज़

हो जहाँ ख़त्म अक़्ल की परवाज़

वो मुक़र्रर तो दर करें अपना

ढूँड लेगी मिरी जबीन-ए-नियाज़

एक मिज़राब-ए-ग़म में टूट गया

कितना नाज़ुक था ज़िंदगी का साज़

पर्दा-ए-ज़ीस्त उठा रहा हूँ मैं

अब तो उठ पर्दा-ए-हरीम-ए-नाज़

उन की नीची नज़र का ओछा तीर

दिल में है मिस्ल-ए-उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़

वक़्त-ए-आख़िर नफ़स में पाता हूँ

तेरी रफ़्तार-ए-नाज़ के अंदाज़

कैसा गिर्यां है कैसा नादिम है

मेरी मय्यत पे मेरा दुनिया-साज़

हर ज़मीं सैर-गाह थी अपनी

हाए वो 'अब्र' क़ुव्वत-ए-पर्वाज़

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