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जो लोग जान बूझ के नादान बन गये

Abdul Hameed AdamAbdul Hameed Adam
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जो लोग जान बूझ के नादान बन गये
मेरा ख़याल है कि वो इंसान बन गये

हम हश्र में गये मगर कुछ न पूछिये
वो जान बूझ कर वहाँ अन्जान बन गये

हँसते हैं हम को देख के अर्बाब-ए-आगही
हम आप की मिज़ाज की पहचान बन गये

मझधार तक पहुँचना तो हिम्मत की बात थी
साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गये

इन्सानियत की बात तो इतनी है शैख़ जी
बदक़िस्मती से आप भी इंसान बन गये

काँटे बहुत थे दामन-ए-फ़ितरत में ऐ 'अदम'
कुछ फूल और कुछ मेरे अरमान बन गये

 

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