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धूप हुई तो आँचल बनकर,
कोने-कोने छाई अम्मा,
सारे घर का शोर-शराबा,
सूनापन, तन्हाई अम्मा
उसने ख़ुद को खोकर मुझमें,
एक नया आकार लिया है,
धरती, अंबर, आग, हवा, जल,
जैसी ही सच्चाई अम्मा
घर में झीने-रिश्ते मैंने,
लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके-चुपके कर देती है,
जाने कब तुरपाई अम्मा.
सारे रिश्ते-जेठ-दुपहरी,
गर्म-हवा, आतिश, अंगारे,
झरना, दरिया, झील, समंदर,
भीनी-सी पुरवाई अम्मा.
बाबूजी गुजरे; आपस में,
सब चीजें तक़्सीम हुईं, तब-
मैं घर में सबसे छोटा था,
मेरे हिस्से आई अम्मा.
~आलोक श्रीवास्तव
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