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आज मैं बेटी हूँ
कभी बहू भी बनूगीं.
एक ख्वाईश है मेरी,
रुपयों पैसो से न सही
कर्म कर्तव्य से ही
मैं दोनों का फर्ज निभा सकू.
बड़ी बड़ी बातें न सही
छोटी छोटी खुशियां दे सकू.
इसका उसका तेरा मेरा नहीं
सब कुछ हमारा कर सकू.
समस्या जो कोई आन पड़े,
तो बहू बेटी में, न मैं मापी जाऊं
न परायी रहूं, न पराया कहलायी जाऊं
साथ सबके, मैं शायद न चल सकूं
पर धैर्य इतना हो, कि साथ सबका दे सकूं
मैं बाटूं न मायके ससुराल को कभी,
और सब्र इतना ही हो, कि
दोनों ही परिवार अपना हो.
Pratibha Singh Kuch Ankahe Alfaaz
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