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अजीब ढंग हैं अबके बहार आने के

चमन में चार सू चर्चे हैं घर जलाने के

वो तेज़ आँधी गुलिस्ताँ में अबकी बार चली

के तिनके भी ना रहे मेरे आशियाने के

तू बवफा भी रहा और कभी वफा भी ना की

मैं सद्क़े

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