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यूँ तो भूले है हमे लोग कई,
पहले भी बहुत से
पर तुम जितना कोई उनमे से याद नहीं आया..
बेवजह बेवफाओं को याद किया है,
गलत लोगो पर बहुत बर्बाद किया है.
अब कोई हक़ से हाथ पकड़कर महफ़िल में दोबारा नहीं बैठाता,
सितारों के बीच से सूरज बनने के कुछ अपने ही नुकसान हुआ करते है..
वो तितली की तरह आयी और ज़िन्दगी को बाग कर गयी
मेरे जितने भी नापाक थे इरादे, उन्हें भी पाक कर गयी।
अपने आप के भी पीछे खड़ा हूँ में,
ज़िन्दगी , कितने धीरे चला हूँ मैं…
और मुझे जगाने जो और भी हसीं होकर आते थे,
उन् ख़्वाबों को सच समझकर सोया रहा हूँ मैं….
ये सब कुछ जो भूल गयी थी तुम,
या शायद जान कर छोड़ा था तुमने,
अपनी जान से भी ज्यादा,
संभाल रखा है मैंने सब,
जब आओग तो ले जाना..
ज़िन्दगी से कुछ ज्यादा नहीं बास इतनी सी फरमाइश है ,
अब तस्वीर से नहीं, तफ्सील से मिलने की ख्वाइश है…
अब वो आग नहीं रही, न शोलो जैसा दहकता हूँ,
रंग भी सब के जैसा है, सबसे ही तो महेकता हूँ…
एक आरसे से हूँ थामे कश्ती को भवर में,
तूफ़ान से भी ज्यादा साहिल से डरता हूँ…
तेरी बेवफाई के अंगारो में लिपटी रही हे रूह मेरी,
मैं इस तरह आज न होता जो हो जाती तू मेरी..
एक सांस से दहक जाता है शोला दिल का
शायद हवाओ में फैली है खुशबू तेरी
हम दोनों में बस इतना सा फर्क है,
उसके सब “लेकिन” मेरे नाम से शुरू होते है
और मेरे सारे “काश” उस पर आ कर रुकते है..
उसे मैं क्या, मेरा खुमार भी मिले तो बेरहमी से तोड़ देती है,
वो ख्वाब में आती है मेरे, फिर आकर मुझे छोड़ देती है….
इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आखिरी पन्ने पर,
आप उसे किताबो में डालकर मुश्किल न कीजिये..
माना की तुमको इश्क़ का तजुर्बा भी कम नहीं,
हमने भी बाग़ में हैं कई तितलियाँ उड़ाई..
कामयाबी हमने तेरे लिए खुद को यूँ तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाज़ार में रख कर इश्तेहार कर लिया..
जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं,
बस इतनी से फरमाइश है,
अब तस्वीर से नहीं,
तफ्सील से मलने क ख्वाइश है..
बस का इंतज़ार करते हुए,
मेट्रो में खड़े खड़े
रिक्शा में बैठे हुए
गहरे शुन्य में क्या देखते रहते हो?
गुम्म सा चेहरा लिए क्या सोचते हो?
क्या खोया और क्या पाया का हिसाब नहीं लगा पाए न इस बार भी?
घर नहीं जा पाए न इस बार भी?
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