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रोज़ गुज़रता मैं इस सड़क से,
बहुत मिल जाते खैरियत पूछने वाले !!
वो पेड़-वो पौधे! मिलते हर रोज़,
कुछ इशारे हवा के झोकों से ।।
पूछते हाल -चाल वो !!
जवाब में मैं एक लंबी साँस ले ।।
सब खैरियत सोच निकल पड़ता अपने धुन मे
और वो वहीं इंतज़ार करते दोबारा मेरी खैरियत पूछने ।।
____---~युगांशु रवि ---
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