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नवरस कविता
मैंने उसे "श्रृंगार रस" से देखा!
उसने मुझ पर "करुण रस" का जाल फैंका!
जीवन में सब कुछ "अद्भुत रस" से सराबोर हुआ!
फिर अचानक उसने "भयानक रस" की वर्षा की!
तत्पश्चात मेरे मूल स्वभाव "रौद्र रस" का प्रारम्भ हुआ!
इस सबके बीच दुनिया ने "हास्य रस" का आनन्द लिया!
और मैंने "वीर रस" से हर परिस्थिति का सामना किया!
और एक दिन दुनिया में "वीभत्स रस" फैल गया!
और आज मुझे "शांत रस" की अनुभूति हुई, जब मैंने सिर्फ़ शिव और सत्व को समझा!
फिर मैंने किसी को उस "श्रृंगार रस" के साथ नहीं देखा!
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