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जो काल के भाल पर वीरों सी छाप देते हैं
एक डुबकी में सागर की गहराई नाप लेते हैं
पुँज बनकर इस संकट में प्रखरना होगा
हे मानुष तुझे हंसकर चलना होगा ।
गिनने को जग में अगणित सितारे हैं
वो जीता ही क्या अब तक जो हारे हैं
अजेय बनकर रथ पर निकलना होगा
हे मानुष तुझे हंसकर चलना होगा ।
जिनके फौलादी पंजे गौरव गाथा गाते हैं
जो अपने विवेक से गगन छूकर आते हैं
अमावस में भी पूनम सा निखरना होगा
हे मानुष तुझे हंसकर चलना होगा ।
पुँज बनकर इस संकट में प्रखरना होगा ।।
✍️ योगेंद्र सिंह राजावत
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