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- कविता
तुम्हारे होंठ आज भी सुनते है बस
बस आँखें बोलती हैं आज भी
कुछ मुश्किल काम अब आसानी से हो जाते है
मैं आग ( तुम्हें) छूते हुए नही सोचता
तुम पानी (मुझे) छूते हुए सोचती हो
जो कुछ भी सुंदर और सरल है इस जहाँ में
उसमें तुम्हारा अंश है
'अक्सर बोलते-बोलते चूमने की इच्छा होती है'
चूमना *सीचना ( खेत में पानी देना) होता है
सिर्फ़ गले लगाने से दुख कम नही होते
बिन पूछे गले से लगा लेना
बिन सोचे चूम लेना
सबकुछ तो नही पर बहुत कुछ नष्ट होने से बचा लेता है
किसान के फसल की तरह.
- नीरज नीर
https://www.instagram.com/p/Cnd0Q1Fp8a1/?igshid=NDk5N2NlZjQ=
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