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- कविता
तुम्हारे होंठ आज भी सुनते है बस
बस आँखें बोलती हैं आज भी
कुछ मुश्किल काम अब आसानी से हो जाते है
मैं आग ( तुम्हें) छूते हुए नही सोचता
तुम पानी (मुझे) छूते हुए सोचती हो
जो कुछ भी सुंदर और सरल है इस जहाँ में
उसमें तुम्हारा अंश है
'अक्सर बोलते-बोलते चूमने की इ
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