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◆कुहासा (कोहरा,fogg)
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बहरूपिया बनकर
प्रेम अक्सर खिड़की तक चला आता है.
नीम के पत्तों को छूता है
पेड़ से गले लगता है,
मिट्टी को चूमता है
और कहता है
उनसे कह देना
आज फिर आया था मैं यहाँ.
और ये भी कि
मैं फिर आऊँगा
कुहासा बनकर
'सर्द मौसम में प्रेम 'कुहासा' बन जाता है'.
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- नीरज नीर
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