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तेरे होठों से
जो लफ्ज़ो की बरसात नही होती
तेरी चुप्पी मेरे सीने की आग को
बुझाती नही,
भड़का देती है
मैं थक गया हूँ तेरी ख़ामोशी से
अपने मतलब के अर्थ निकाल कर
अब मुझमें इतनी हिम्मत बाक़ी नही
कि मैं तुझसे बात छेड़ सकूँ
तू इतंजार कर या ना कर
पर मैं इतंजार में हूँ
तेरे होठों की नाद को
सुनूँ तेरे साथ बैठकर
और सुनूँ तेरी हर खुशी, तेरा हर दर्द
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