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ये सहमी हुई रातें
जहाँ जरा-सी आवाज शोर लगती है
मैं तरसता हूँ तेरी मीठी आवाज को,
ये हवायें मुझे छू-कर
तुम्हारा अहसास कराती है।
कुछ अक्लमंद लोग इसे पागलपन कहते हैं और
कुछ पागल इसे इश्क़ कहते हैं
तुम्हारी आँखे रश्क करती है
मैं होश में बहकता हूँ
बेख्याली में सम्भलता हूँ
तेरी हंसी को छू-कर
मेरी रूह रश्क़ करने लगती है
तेरे लफ्ज़ो की पहनाई मुझे तैरा कर कहीं और ले जाती है
तुम इसे जो कहो लड़की!
मैं इसे इश्क़ लिखता हूँ।
तुम्हारे न होने में भी तुम हो
दूर तक जाती हो मेरी बाँह थाम
मुझसे बतियाती हो, खिल-खिलाती हो, मुरझाती हो
देखती हो फूलो का टूटना
सहम जाती हो,
मैं इसे अपना पागलपन कहता हूँ
तुम इसे इश्क़ कहती हो।
-रोहित
Twitter - @YesIRohit
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