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सरहद के उस पार,
सपने हुए ज़ार ज़ार,
फ़ौलादी खून बह गया,
कोई ख़ामोश रह गया,
किसी को दर्द देकर!
किसी को खौफ़ देकर!
ज़िंदगी से ऐश लेकर!
कोई चैन की नींद सो गया!
झूठी बातों का वो पुल ढ़ह गया!
आपबीती में वो सब कह गया!
हुलास में अपने प्रचंड बह गया!
यतीम होने का ज़ख्म दे गया!
बहुतायत हैं उस बूझदिल को आराम!
चुनौती पर उसकी जो लग गया विराम!
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