वक्तव्य's image
Share2 Bookmarks 226 Reads7 Likes

रौशन हुआ भीतर का नूर,

रौनक वक्तव्य ये भरपूर!

अब दुविधा रह रह ना सताए,

हर अनुभव नवीन पाठ सिखाए,

एहसास भी होते अत्यंत नाज़ुक,

चाहे ज़ोर लगाए जैसे कोई चाबुक!

वो उमड़ते तब ही जब हम हों खिन्न,

या प्रश्न हो जिज्ञासा के पास अभिन्न!

प्राथमिकताओं संग बंधन हो विभिन्न,

या करुणा उमड़ रही हो अविच्छिन्न!

ये प्राकृतिक पहलू प्रतीत होते सुलभ,

एहसास के संग बोध भी हो ऐसा दुर्लभ!

मैं दीपक जो लौ को लिए हुआ हूं ठहरा,

उस पर सदा मां के आंचल का रहता पहरा!

चुनौती का बल हो जाए कितना भी गहरा,

हृदय में स्वत: आए मां का सलोना चेहरा!

मुस्कुराती मां मुझे देखकर रात्रि में सोता,

बीज सशक्त मन रोज़ मस्तिष्क में बोता,

समस्त अंधकार भी ध्वस्त होकर सरकता!

दृष्टिकोण व्यापक होकर सब कुछ परखता,

मां भी शिशु को कोख में ही वो जड़ी पिलाती!

तभी तो आंसुओं को मेरे सोख रास्ता दिखलाती,

हमारी मेहनतकश मां होती लौह से भी मज़बूत,

संतुलन से सर्वत्र देती अपने स्नेह का सबूत।



- यति







❤️






^_^





No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts