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रौशन हुआ भीतर का नूर,
रौनक वक्तव्य ये भरपूर!
अब दुविधा रह रह ना सताए,
हर अनुभव नवीन पाठ सिखाए,
एहसास भी होते अत्यंत नाज़ुक,
चाहे ज़ोर लगाए जैसे कोई चाबुक!
वो उमड़ते तब ही जब हम हों खिन्न,
या प्रश्न हो जिज्ञासा के पास अभिन्न!
प्राथमिकताओं संग बंधन हो विभिन्न,
या करुणा उमड़ रही हो अविच्छिन्न!
ये प्राकृतिक पहलू प्रतीत होते सुलभ,
एहसास के संग बोध भी हो ऐसा दुर्लभ!
मैं भी दीपक भांति लौ को लिए हूं ठहरा,
जिसपर सदा मां के आंचल का पहरा!
चुनौती का बल हो जाए कितना भी गहरा!
हृदय में स्वत: आए मां का सलोना चेहरा,
मुस्कुराती मां मुझे देखकर रात्रि में सोता,
बीज सशक्त
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