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तुमने सुनिश्चित कर ली सदाकत,
दिनचर्या में जोड़ी अनोखी आदत,
तुम आत्मसमर्पित करते अपनी खामी,
नहीं तुम किसी लालसा के स्वामी,
वर्जिश रोज़ करना तुम्हें भाता,
आत्मावलोकन से व्यक्तिव संवरता जाता,
हर उलझन का भंवर सुलझ जाता,
तुम कई विधाओं के हो ज्ञाता!
तुम ना कुढ़ते कभी अभावों में,
खूब सुकून भी
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