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कुछ तर्क वितर्क,
अनापेक्षित संपर्क!
सुखद सा जुड़ाव,
आत्मीयता का भाव!
जानने मिला मानो कोई पुरातन गांव,
ज़िंदगी की धूप में जैसे मिली थोड़ी छांव,
ना कुछ गैरज़रुरी जताना,
ना कुछ बेवजह समझाना,
इतना सरल सा अफसाना!
बिना अंत के सफर को जैसे हम रवाना!
कुछ रिश्तों के नहीं होते नाम,
कभी-कभी उन्हें याद करते गुज़र जाती शाम,
अब ऐसे किस्से कहां होते आम?
सबकी जिंदगी में उपलब्ध बहुत से काम!
किंतु मन करता यूंही फुसफुसाने का,
किसी अपने से लगते रिश्ते को गुदगुदाने का!
यूंही बिना किसी नकाब के मिल पाने का,
आत्मा से दोस्ती निभाने का,
एक दिन कभी फिर मिल पाने का!
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