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सोलह की उम्र,
सपनों का क्रम!
बढ़ता हुआ जुनून,
लुटता हुआ सुकून,
उम्र हुई फिर अठारह,
आराम हुआ नौ दो ग्यारह!
ज़िम्मेदारियों से आया होश,
गहराया साहित्य से शब्दकोश,
उत्पीड़न का भी कुछ हिस्सा,
लेकिन सुधरा इक्कीस में किस्सा!
जब बाईस में पाई नौकरी स्थाई,
दुविधा सारी लगने लगी थी पराई,
तेईस में फिर एक शोला जागा,
भय को कुचल दबे पांव भागा!
मन के कंपन को फिर भापा,
स्नेह की गहराई तो वक्त मापा,
चौबीस में समीप सिर्फ शोरगुल,
पराक्रम दिया बाल्यावस्था का गुरुकुल,
पुराने पाठ प्रौढ़ावस्था में आते याद,
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