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अरसा गुज़रा हुए मिलाप एक मुख़्तसर!
कहो क्या रही बाकी हमारी दोस्ती में कसर?
क्या फ़ासला न करता तुम्हारे हृदय पर असर?
उम्मीद हैं हौसलों से भरपूर हैं तुम्हारा सफर!
आजकल सुनने न मिलती तुम्हारी रिवायत!
क्या गुम हो चुकी वो अनोखी पुरानी रूहानियत!
क्या बड़े होने पर विलुप्त हो चली मासूमियत?
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