
तुम्हारी ख़ामोशी से ताल्लुक नहीं,
ये कहना भला कैसे सही?
गुज़रे होगे तुम कई हालातों से!
वास्ता रखते होगे कई भावों से,
मैं भी तो कुछ तुम सी हूं!
नवीनता की खोज में गुम सी हूं!
रोज़ काम को निकलती,
थोड़ा उम्मीद को धकेलती,
दया समाज में उड़ेलना चाहती,
सर्वदा सशक्त बनी रहना चाहती!
जब बुद्धिमत्ता मापने की आए बात,
तो भांपना चाहती चालाकी वाली हर जमात,
ओ राहगुज़र! हमारी कल्पना हो सकती भिन्न,
हमारे अंदाज भी हो सकते अत्यंत विभिन्न!
किंतु गुलों ने दूर तक अपनी सुगंध को फैलाया,
गुलिस्तां में मौजूद हर शख्स को बराबर महकाया,
तन्हाई में फिर भला क्यों हमें कोई पराया!
निंदा का आवेश न रख सके हमें बहकाया,
यकीन हो आत्मसौंदर्य पर, परे रख काया!
मन को तृप्त करने हेतु न ललचाए कोई माया,
हृदय में विनम्रता को मनुष्य ने जब समाया,
उसे प्राप्त हुई राह में अपनेपन की सुकून भरी छाया!
- यति
Dedicated to our vulnerabilities and desire to interact!
❤️
" Several souls survive on the generosity of strangers."
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