राहगुज़र's image
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तुम्हारी ख़ामोशी से ताल्लुक नहीं,

ये कहना भला कैसे सही?

गुज़रे होगे तुम कई हालातों से!

वास्ता रखते होगे कई भावों से,

यूं रोज़ काम को निकलना,

कई दफा हौसले को धकेलना,

करुणा को समाज में घोलने की मंशा,

चाहते तुम हो असल हुनर की प्रशंसा!

जब बुद्धिमत्ता मापने की आए बात,

तो भांपना चाहते चालाकी वाली हर जमात,

ओ राहगुज़र! हमारी कल्पना हो सकती भिन्न,

हमारे अंदाज भी हो सकते अत्यंत विभिन्न!

किंतु गुलों ने दूर तक अपनी सुगंध को फैलाया,

गुलिस्तां में मौजूद हर शख्स को बराबर महकाया,

तन्हाई में फिर भला क्यों हमें कोई पराया!

निंदा का आवेश न रख सके हमें बहकाया,

यकीन हो आत्मसौंदर्य पर, परे रख काया!

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