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जज़्बातों की संजीदगी,
और ये सुंदर सी ज़िंदगी!
लफ्ज़ों की हो जुगलबंदी,
पारदर्शी हो पहल से पेचीदगी,
कुछ स्पष्टता फिर यूं आएगी!
घनेरी कलह भी मिट जाएगी,
रात को बेचैनी यूं ना जगाएगी,
रास्ता रूह को उन्नति दिखाएगी!
सत्य के आकर्षण से मुख दमकेगा,
मन का दर्पण भी खूब चमकेगा!
हर दुआ का असर फ़ख़्र से उभरेगा,
जगत अशांति से मुक्त होने से कैसे मुकरेगा?
फिक्र की भी रिश्तों को मिलेगी खुराक़,
ओज से आबाद होगी रुह भी पाक,
कष्ट से ना हो कभी कोई जीवन खाक,
क्या मेरे मरहम वाला पत्र भेजेगा कोई डाक?
हर पीढ़ी को सिखलाता यही इतिहास,
एकता की शक्ति सबसे उत्तम और खास!
बाकी चाहे जैसा भी हो देह रूपी लिबास,
रूह तो रखती सारे किए धरे का हिसाब!
- यति
।। वसुधैव कुटुम्बकम् ।।
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