नुक्ता!'s image
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राही तुम खुद नहीं किसी के विचारों के अधीन,

तुम्हारी निर्मल ताकत निखरे जब तुम रहो स्वाधीन!

नुक्ता बस यह कि तुम अपने घेरे को बढ़ाओ,

अपने भय को सशक्त रवैया रख सदैव हराओ!

अविरल बहती क्रियात्मक धारा संग अभय को जगाओ,

वो जो भीतर समाए तुम्हारे उस चैतन्य से खुलकर फरमाओ!

कहीं तुम कम संसाधनों का बना तो नहीं रहे बहाना?

तो सुनो जग नहीं रहता किसी की क्षमताओं से कभी बेगाना,

समय तुम्हारा आएगा! उससे पहले तप से बहुत कुछ सिखलाएगा!

बेशक इतिहास स्वर्णिम विजय का लौटकर आएगा,

कुशाग्र बुद्धि तथा कांति पर तुम ना

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