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ये गुनगुनी धूप,
प्रकृति का खिलता हुआ स्वरूप,
विपुल मखमली घास,
पंछियों तितलियों का बसेरा आसपास,
आसमां जैसे बारिश में छिड़के नीर,
नयनों के समक्ष उभरती शुभ्र तस्वीर,
अपने तेज़ से सहज पोषण देते सूर्य,
आभामंडल में विभिन्न परिवर्तन कितने अनिवार्य!
बगीचों में कोलाहल तथा आवाजाही,
गुल पत्तियां भी दें रही गवाही,
आने को नूतन बहार,
हृदय कर रहा श्रृंगार!
नवजीवन प्रदान करती प्रकृति के प्रति आभार,
प्रयत्नशील प्रकृति प्रतिपल लेती स्वयं को निखार,
क्यों न हम भी अपनी आदतों को लें ज़रा सुधार!
प्रण लें ना फैलाएंगे कूड़ा कभी बाहर,
हम जानते प्रकृति मनुष्य के बिना सूनी,
किंतु प्रदूषण से आपदा की तीव्रता दुगनी!
वो मुरझाए हुए सुर्ख लाल फूल अब मेहरूनी,
गहन साक्षात्कार हो अपने कर्तव्यों का अंदरूनी!
- यति
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