मंत्रणा✨'s image
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पहल के पश्चात संयोजकता,

मानो भ्रांतियों को कोई टोकता!

ना रहती किसी प्रकार परतंत्रता,

दीर्घायु बनाती रिश्ते को मित्रता!

संवाद व मंशा में प्रचुर हो करुणा,

तो मंत्रमुग्ध कर देती आत्मा को मंत्रणा!

और बंधी चमकीली ज़ुल्फें जैसे खुलेंगी,

फिर एकांत में सहसा नज़रें जब मिलेंगी,

स्नेह का मुख पर स्पर्श होगा बेहद हल्के,

और बंद होंगी जब मुस्कुराते नन्ही पलकें,

फिर मुख पर उमड़ी हर बारीक सी लकीर,

छप जायेगी आंखों में जीती जागती तस्वीर!

हृदय से झांकता चेहरा मानो होगा समक्ष,

भाव भंगिमा को भी सहज रखने में वो दक्ष!

तप से जैसे प्रखर हुआ वो चरित्रवान,

अतीत से रुचिकर लगता उसे वर्तमान!

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