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अभिव्यक्ति में स्नेह भी संग,

बाध्य ना करते उनके ढंग!

ध्येय पर से चित्त ना होता भंग,

नटखट बालपन दर्शाता उमंग!

मेरे केशव का कोमल सा स्वभाव,

सिखलाया धैर्य रखना चाहे हो आभाव,

राधा के प्रेम से पावन होता भीतर से मन,

मीरा न विचारें कितना अधिक था राजपाठ में धन!

कृष्ण का प्रेम प्रतीत होता आनंद का स्त्रोत,

निहारती उनके जगत को प्रेम से होकर ओत प्रोत!

ठहराव-बदलाव और वो सुख जो भौतिक,

जगत में व्याप्त नंदलाल की शक्ति अलौकिक!

बनकर मैं भी सार्थक माध्यम रहूं सक्रिय,

प्रयास करूं ऐसे जो हो प्रकृति को प्रिय,

कुरीतियों से

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