कौतुक's image
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नज़रें कभी नम सी रहती,

हौले से ग़म ये सोख लेती!


कभी बिलख़ कर रो पड़ती,

कभी सब भूल चैन से सो लेती!


कभी अश्रु की धार न इनसे रुकती,

कभी नज़ाकत में निर्मल हो झुकती,


बैर से पनपा रोष भी इन नज़रों में ही दिखता,

कुछ चिट्ठियों को चुपके चुपके जैसे कोई लिखता!


कभी इन पर पट्टी बांध झूठ इनको बिकता,

प्यार की गहराई मापने का भरोसा इनप

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