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पलकों पर बेहिसाब नींद,
जज़्बा ख्वाइशों का मुरीद,
अनगिनत रातें जाग,
बेबसी से कहीं दूर भाग,
अंदर लिए जुनून की आग,
शक्ति ने चुना मिलाप को प्रयाग,
निखरते समस्त अंदरूनी राग,
तपस्या से पाया कुछ ऐसा बैराग,
मानो दरख़्त से बिछड़ते पत्ते हज़ार ,
दे रहें रूठे दिल को क़रार,
ये दुनियादारी का बाज़ार,
गुम हैं यहां प्यार को करने वाले स्वीकार,
अब एकांत से करता हृदय ऐतबार,
विस्मयक
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