
बहुत भारी हैं इसका वार!
एकांत में बनती ये पतवार,
पूजती उसे जो हैं निर्विकार,
शब्दों को प्रदान करती आकार,
इससे जन्में फौलाद के कई प्रकार,
ये तो करती कुरीतियों पर भी प्रहार!
उत्पन्न कराती स्वयं नए व्यापक विचार!
जो लिखोगे वो हो चलेगा सदाबहार,
प्रश्न करो उस पर जो छपे खुले अखबार,
क्यूं हो रहे सुरक्षित समाज में भी बलात्कार!
नारी के सम्मान को किस लिए जा रहा नकार?
ऐसे समाज पर हमें भी तो आती हैं धिक्कार!
कुचल के नागरिकों के नैतिक अधिकार,
मानवता के प्रति क्यूं ऐसा घृणित व्यवहार?
संस्कृति का सौहार्द संग होना ज़रूरी प्रचार,
संभव तभी हैं विविधता में बच पाना प्यार!
बना लो जीते जी तुम इसे अपना हथियार,
दब ना सकती कभी कलम से जनी चीत्कार!
इससे तो मुनासिब अन्याय पर भी पलटवार,
शाश्वत कलम के समक्ष ढ़ेर हैं विद्रोह की मार!
बताओ कलम कैंची हैं या तलवार?
- यति
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