
जल जाऊं द्वेष की अग्नि में,
इससे तो बेहतर मुझे श्रम का तप!
समेट लें किसी को अपनी दुनिया में,
इससे तो बेहतर त्याग दें सारी तड़प,
हिचकिचाते हम अक्सर करने में पहल,
इरादा रहता नेकी का फिर भी अटल!
अहं टूटने के डर से जाता क्या दिल दहल?
सुकून नहीं मुनासिब ऐसा क्या हो जाता जटिल?
अक्सर यूंही आंखों से छलक पड़ता किंतु जल,
असल में क्या इस कश्मकश का हैं कोई हल?
छिपी रहती चाह की अग्नि हृदय के किसी कोने
बिछे देख आज खुले आकाश के नीचे बिछौने!
तारों से पूछा क्या होंगे मैं और तुम कभी 'हम'
टिमटिमा रहे थे, सवाल सुन मेरा गए सभी थम!
चांद भी निहारते हुए रहा मेरी चुप्पी को तक,
चांदनी पर इठलाते हुए दर्शाए अपने सबक!
बिछड़ने से मिट जाता फिर मन का सारा वहम,
दूसरों की खुशी में ही मिल जाता फिर मरहम,
सब्र से मिट जाती बला चाहे हो वो कितनी विकल,
मृगतृष्णा पश्चात जैसे मिलता जल कहीं दूर मरुस्थल!
- यति
Fire & Water!
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