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ज़बाँ पर लाना हो नया विचार,
करना हो चाहे शोभनीय विस्तार,
हिंदी से सीखी मैंने अनेक मात्राएं,
कितना कुछ सिलखलाती हमें भाषाएं,
हिंदी की हरेक श्रृंखला भी विस्तृत,
श्रेय रखती उत्त्पति हेतु वेदिक संस्कृत!
इसमें जारी होते अनेक फरमान,
सह आधिकारिक भाषा का इसे प्रमाण,
सौहार्द बिखेरती ये संपूर्ण हिंदुस्तान,
हिंदी की अपनी ही विशिष्ट पहचान,
वाचन में झलकता स्थायित्व और ईमान,
विस्मयजनक देवनागर
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