
तुम्हारी याद में आज ज़रा रुखाई,
अंबर से कहती मैं करो मामले की सुनवाई!
वो एक कमसिन सी कश्मीर की कली,
अकेले पूरे भारत भ्रमण को जो चली!
आज स्वर्ग में शायद ठहरी हैं,
फिर क्या स्वर्ग के प्रहरी कहते हैं?
क्या वो बिन बुलाएं मेहमानों की करते नवाज़ी?
दिलों को जुदा करने के लिए रहते वहां सब राज़ी?
अब बतलाऊं क्या मां के मैं फिर बारे में!
अब नहीं राह देखती वो मेरी खड़े द्वारे में!
वो चली गई हैं कहीं दूर, किंतु उजड़ा नहीं फितूर!
जीते जी देखा उसकी ममता को होते मैंने मज़बूर!
अब शरारत करती नहीं वो मुझसे,
खफा तो लेकिन नहीं रह सकती वो मुझसे!
क्या वो सोचती हैं मैं हो गई बहुत सयानी?
उसको मेरी फिक्र ना हो ऐसा मानना मगर बेमानी!
कश्मीर से या चाहे कहीं से क्यों न आए कन्या कुंवारी!
वो अपने भारत के प्रति रहती सदैव अत्यंत आभारी,
नन्ही आस लिए अथक प्रयास करती देखी मैंने नारी!
धरती पर स्वर्ग बसाती हिम्मत से लबरेज़ वो लड़की प्यारी।
- यति
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