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उड़ान जो थी कबसे अधूरी,

जल्द होने को अब वो पूरी!

द्वंद से भी बना लें ज़रा दूरी,

नई शुरुआत का स्वागत ज़रूरी!

धैर्य से बंधी सुनहरी सौगात,

उत्साह से लबरेज़ जैसे बारात!

ऐसे अचानक हुई दस्तक बड़ी तेज़,

अनिश्चितता से कहां था कभी परहेज़?

मन के आंगन में सुख कि कलियां आपार,

निश्चय से खिली गुलों में क्या खूब बहार!

अब अनुशासन का नया आयेगा पाठ,

हृदय खोलेगा हर रिश्ते में पड़ी गांठ,

आने वाला वक्त समस्याओं को पिघलाएगा,

स्वदेश का तिरंगा दृष्टि के समक्ष लहराएगा!

रूह को मिलना मोक्ष सरीखा उपहार,

नकारात्मकता का नहीं संभव प्रहार!

ये जीवन दिखलाता दौर हमें अनेक,

बहरूपी परछाई को ना समझना नेक!

एकांत में सहसा मिले रौशनी ताकि,

उसके लिए आगे बढ़ते रहना एकाकी!



- यति




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