
आज फिर यूंही याद आई,
कल ही तो थी वो मुझे सताई!
सिमटता हुआ सिलसिला या दस्तूर,
हैं फांसलों का भी थोड़ा कसूर,
लगता पल भर तकती रहूं दूर से घूर,
होने दूं सारे भ्रम को मेरे चूर!
कई मीलों अब हम दूर,
मान लें इसे जीवन का दस्तूर?
बंटते रहें फिर भी सारे गम,
रोज़ हो गफलतें ज़रा कम,
हालातों में हौसला बढ़ाएं दम,
सफलता का हो चाहे जो क्रम,
रुझान की मौज़ूदगी में हो श्रम!
जानता सबकुछ ये दूरंदेशी दस्तूर,
सूक्ष्म संकेतों से मन को यही आस,
दूर होकर भी हमेशा तुम रहोगे बेहद खास!
हंसी से गायब होती थी तनाव भरी हरारते,
आती थी झोली में नई शरारतें!
उन्मुक्त हो कल की सभी बातें,
चैन की नींद की अक्सर हो रातें!
तृप्त होते रोज़ परिश्रम से एहसास,
वर्तमान को जो भी आए रास,
उसी में सब्र रखने की दरकार,
प्रेम से लिप्त ये प्यारी पुकार,
देती सभी फांसलों को नकार,
मिलन का स्वप्न जल्द होने को साकार।
-यति
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"The beauty of the sea is that it never shows any weakness and never tires of the countless souls that unleash their broken voices into its secret depths."
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