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सौहार्द जब हो स्वभाव में,
मरहम बनती दया घाव में!
प्रकृति मां का संतुलन कमाल,
स्वतंत्रता देने पर ना हो उन्हें मलाल!
वो अनंत प्रेम सदैव बरसाती,
फिर कद्र न होने पर तरसाती!
रोज़मर्या में कागज़ों का ना हो दुरुपयोग,
ऊर्जा क्षय करने से बचें जब ना उसका उपयोग!
स्वस्थ रहने हेतु भी ज़ारी रहे योग,
जल को कम खर्च करने के हो प्रयोग!
ना हो गैर ज़रूरी खानपान का भोग,
सरल प्रयासों से मुमकिन रहना निरोग!
जंगल,जल और जीवन का करें संरक्षण,
एहतियात बरतें इससे पहले आए नौबत भीषण!
आने वाली पीढ़ी को मिले सही उदाहरण,
याद रहे उनके प्रति भी सजग रहना हर क्षण!
प्रकृति मां जानें पुन: निर्माण भली भांति,
उनके प्रति कृतज्ञ रहने से मिले हमें आंतरिक शांति!
-यति
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